Shri
Somanand

                                   ऊँ
                         उद् गम - उल्लास

“१९२७ पौष पूर्णिमा ४ बजे संध्या गर्भ में ही बिक गया नागाजी के हाथ से कहा उसने, ‘काँता देवी ने खरीदा है

 

तब हुआ जन्म ४८ घंटो की दौड़धूप के बाद बंदियों और चारणों में बांटे गये वस्त्र बजते नगाड़ों में नाचते थे सभी

 

अयोध्या के परमसंत नरसिंह दास ने ‘राम मन्त्र’ देकर फूँक दी चेतना जपने में सदा आनन्द परम मिलता था महामण्डलेश्वर विद्द्यानन्द स्वामी में, ११ की

 

आयु में, कृष्ण का मंत्र मोहन भर दिया तभी से दसोपनिषद् और तुलसीदास के द्वादश ग्रंथो में अनुशीलन चला था गीता ज्ञानेश्वरी और दासबोध से तत्व जगा

 

चौदह की आयु में सिद्ध कालिया बाबा ने काली का महामंत्र कानों में पूर्ण किया तबसे बारह वर्षों तक चले अनुस्ठान सब तेज का अनुभव होता था प्रतिक्षण

 

छब्बीस की आयु में गुरु श्री निरंजन ने प्रसन्न हो व्रह्मविद्या का ज्ञान दिया था पाँचवर्ष बाद श्री फ्रेंच बाबा ने समाधि विद्या से नेत्रोन्मीलन किया था तबसे भवजाल छूटा, छूटा भवसागर

 

उदासीन वदासीन जीवन चलने लगा संतों की सेवा निरंतर ३५ वर्षों से कर रहा था, करने ही लगा भक्तों से शिक्षा ली प्रभु शरणागति की इंद्रिय शास्त्रीय हों, विवेक भरा रहे

 

सर्व कर्म प्रभु अर्पणमय हो शान्ति पाठ समता को सदा बरसावें विश्व में सब का जीवन रहे मंगलमय जय सब गुरुओं की, जय हो '.श्री' की जय सब संतों की जो आने वाले हैं"

 

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